Mani River Nadi: Origin and Importance

स्थानीय नाम– मैनी नदी
इंग्लिश नाम– Maini River
लम्बाई– 87 किलो मीटर
देश– भारत
राज्य– छत्तीसगढ़
संभाग– सरगुजा
जिला– जशपुर
विकासखंड– बगीचा, काँसाबेल, कुनकुरी
ग्राम– बगिया, चोंगरीबहार
क्षेत्र– 261 वर्ग किलो मीटर औसतन (तटीय क्षेत्र)।

Location: 22°39’44″N 83°52’36″E

Introduction: Mani River Nadi, Origin and Importance

मैनी नदी छत्तीसगढ़ राज्य के जशपुर जिला में बहने वाली एक छोटी परन्तु बहुत ही महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी की खासियत यह है कि अन्य बड़ी नदियों की तरह लम्बी न होते हुए भी यह चौड़ी अधिक है। यह एक बरसाती अर्थात मौसमी नदी है। यह बरसात के दिनों में पूरी उफान में होती है। यह एक बहुत ही सुन्दर नदी और पर्यटक स्थल है। हालाँकि यह छत्तीसगढ़ के एक जिले तक ही सीमित है, तथापि इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

मैनी नदी ईब नदी की सहायक नदी है, जो इस नदी की तुलना में ज्यादा लम्बी परन्तु संकरी है। जहाँ मैनी नदी और ईब नदी का संगम स्थल है उस जगह को संगम के नाम से जाना जाता है, और जगह तीतर मारा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।

यह नदी बरसात के मौसम में भरी होती है। गर्मी के दिनों में यह लगभग सुख जाती है।

Origin

इस नदी की उत्पत्ति जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र से हुई है। मुख्य रूप से क्षेत्र बगीचा में आती है/ इन पठारी क्षेत्रों को यहाँ स्थानीय भाषा में पाट क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। इन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष सामान्य से अधिक वर्षा होती है। इस तरह पाट क्षेत्र के बरसाती पानी के एक जगह जमा होने और पठार से नीचे की ओर बहने से इस नदी की उत्पत्ति हुई।

मैनी नाम का शाब्दिक अर्थ मादा मैना चिड़या से है। हालाँकि इस नाम की उत्पत्ति के साथ और कई मत भी जुड़े हुए हैं।

Importance

इस क्षेत्र में इस नदी का योगदान और महत्व प्रत्येक क्षेत्र में है। प्राकृतिक महत्व के साथ ही धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व भी है। इन्ही कारणों से ही इस क्षेत्र में इस नदी को पवित्र माना जाता है, और कई स्थलों में समयानुसार इसकी पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह अपने उपासकों की एक माता की तरह पालन पोषण करती है।

प्रतिवर्ष 1 तारीख को नये वर्ष के अवसर पर यहाँ बूटू झरिया में में लोग पिकनिक मनाने आते हैं।

तीतरमार, Maini Nadi और Ib Nadi का संगम स्थल है, जो एक पिकनीक स्थल भी है।

प्राकृतिक महत्व

यह नदी इस क्षेत्र को प्रकृति को दिया गया वरदान है। इसकी तटों पर वृक्षों की लम्बी लम्बी कतारें हैं, जो देखने में मनमोहक होते हैं। कई जगह विदेशी पक्षियों के समूह भी देखे जा सकते है। बरसात के बाद नदी के ऊपर आसमान में बने इंद्रधनुष मन मोह लेने के लिए काफी है।

आर्थिक महत्व

आर्थिक महत्व इस प्रकार है-

सोना– इस नदी के रेत के कणों के साथ सोने का अंश मिला होता है। स्थानीय लोग रेत के कणों से स्थानीय विधि का प्रयोग कर सोने के अंश को अलग कर लेते हैं

इमारती रेत- आसपास के गाँव में पक्के मकान बनाने के लिए आवश्यक रेत की पूर्ति इसी नदी से होती है।

मछली उत्पादन– यहाँ जाल के प्रयोग से मछली मरना काफी अच्छा व्यवसाय है। कई जगह तो छोटे-छोटे बाँध बनाकर मछलियों का पालन भी किया जाता है।

सिंचाई का साधन– नदी के तटों पर बसे गाँव के कृषकों के लिए यह नदी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराती है। यह प्रत्येक मौसम के लिए पर्याप्त होती है।

धार्मिक महत्व

इस नदी की पूजा अर्चना भी की जाती है। यह पवित्र है।

सामाजिक महत्व

मुत्यु के पश्चात ग्रामवासियों के अंतिम निवास स्थान के रूप में यह जानी जाती है। इसके तटों पर कई जगह समशान पाये जाते हैं, जहाँ मृत्यु के बाद लोगों को दफनाया अथवा जलाया जाता है।

इसे भी पढ़ें: लोरो घाटी जशपुर

परियोजनाएँ

महत्वपूर्ण परियोजनाओं में बाँध निर्माण हैं। कई जगह बाँध बने हुए है। सड़क परिवहन परियोजना के अंतर्गत मुख्य मार्ग को ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने के लिए पूल बने हुए हैं।

प्राकृतिक दोहन

प्रतिवर्ष हज़ारों टन रेत का खनन रेत माफियाओं के द्वारा किया जाता है। यह कालाबाजारी के अंतर्गत आता है क्योंकि खनन किये गए रेत का संग्रहण कर उसे अनुचित दामों पर बेचा जाता है। इसी प्रकार का प्राकृतिक दोहन एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, मदेसर पहाड़ का भी हो रहा है।

Leave a Comment