मेरी कॉलेज शिक्षा: कृषि महाविद्यालय रायपुर

B. Sc. कृषि करें या नहीं?

कृषि महाविद्यालय रायपुर में पढ़ाई कर B. Sc. स्नातक की डिग्री प्राप्त करना मेरी जिंदगी का प्रथम लक्ष्य था। मैंने सुना था कि यदि एक बार कृषि विषय से उच्च शिक्षा क्षेत्र में स्नातक की डिग्री हासिल कर ली जाए तो सरकारी नौकरी मिलनी आसान हो जाती है। अतः मैंने 10 वीं कक्षा से ही इस विषय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मन बना लिया। और 10 कि बोर्ड परीक्षा की परीक्षा प्रथम अंक में उतीर्ण करने के बाद मैंने अपने गाँव से 16 किलो मीटर की दूरी पर स्थित एक गाँव के शासकीय हाईस्कूल में भर्ती ली, क्योंकि मेरे गाँव के हाईस्कूल में कृषि विषय नहीं थी और मैं इस समय अपने आप घर से ज्यादा दूर नहीं जाना चाहता था।

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हाईस्कूल में मुझे 2 वर्ष तक पढ़ाई करनी थी। मैं अपने मामाजी के घर में रहकर ही पढ़ाई करने लगा जो शासकीय हाईस्कूल से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर थी। 11 वीं की परीक्षा प्रथम डिवीजन में उत्तीर्ण करने के बाद मैंने 12वीं में और भी मेहनत किया। इसका नतीजा भी मुझे मिला। हालाँकि मैं मेरिट लिस्ट में न आ सका लेकिन 89.5% अंक के साथ स्कूल में प्रथम रहा।

क्योंकि 12वीं में कृषि पूरी करने के बाद सीधे ही B. Sc. Agriculture में प्रवेश मिलना संभव नहीं होता अतः मैंने PAT अर्थात Pre Agriculture Test परीक्षा की तैयारी करनी शुरू कर दी। मैंने 2 महीने अच्छी तरह से तैयारी की और एग्जाम दिया। जब नतीजे आये तो मेरा रैंक 143 था, तथा कैटेगरी रैंक 88 था। कैटेगरी रैंक के आधार पर काउंसिलिंग में मुझे बिलासपुर के कृषि महाविद्यालय में प्रवेश मिल रही थी। परन्तु दुर्भाग्यवश मेरी उम्र उस समय 17 वर्ष से कम थी अतः विश्वविद्यालय के नियमों के आधार पर मुझे प्रवेश से वंचित किया गया। मैं उदास होकर रो पड़ा।

अगले वर्ष मैंने ओवरऑल रैंक 18 सुरक्षित किया और कृषि महाविद्यालय रायपुर में प्रवेश लिया।

कॉलेज में मैंने रैगिंग के डर से हॉस्टल में रहना उचित नहीं समझा और अपने मामा जी और बड़े भैया के साथ पास के ही गाँव जोरा के एक मकान में किराए पर रहने लगे। हालाँकि रैगिंग ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा, क्योंकि द्वितीय वर्ष के छात्र जो रायपुर के ही थे उन्होंने हॉस्टल से बाहर रहने वालों की रैगिंग ली। और यह प्रथा शायद अभी भी हॉस्टलों में चल रही है।

प्रथम वर्ष में कॉलेज में 2 तरह के पाठ्यक्रम थे। पहली कक्षा प्रायोगिक से सम्बंधित थी तथा दूसरी सैद्धान्तिक से। प्रायोगिक कक्षाएँ सुबह 8 बजे से सुबह 10 बजे तक चलती थीं जबकि सैद्धान्तिक कक्षाएँ दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक चलती थीं। प्रैक्टिकल की कुछ कक्षाएँ शाम के वक्त बजी लगती थीं।

कॉलेज में क्लास लेने वाले कुछ प्रोफेसर बहुत ही निष्पक्ष थे तथा वे सभी के हित के लिए समान रूप से कार्य करते थे।

स्नातक में कुल 4 वर्ष और 8 सेमेस्टर थे। 2 सेमेस्टर एक वर्ष के होते थे, जिनमें प्रत्येक सेमेस्टर 6 महीने तक चलते थे।

पहले, दूसरे और तीसरे वर्ष कक्षाएँ समान रूप से चलती थीं। इनमें निम्न विषय शामिल थे-

सैद्धान्तिक विषयों की सूची:

  • फसल विज्ञान (agronomy).
  • शाक विज्ञान (vegetable science).
  • पशुपालन विज्ञान
  • फल विज्ञान
  • मौसम विज्ञान
  • कीट विज्ञान
  • मतस्य विज्ञान

प्रायोगिक विषयों की सूची:

  • फसल विज्ञान
  • शाक विज्ञान
  • पशुपालन विज्ञान
  • फल विज्ञान
  • मौसम विज्ञान
  • कीट विज्ञान
  • मतस्य विज्ञान
  • सांख्यकीय
मान लें कि अगर कोई विद्यार्थी प्रथम वर्ष के किसी एक विषय में Fail हो जाता है, तो इसकी वजह से उसे अगले वर्ष में जाने से रोका नहीं जाता। यह एक Semester पद्धति पर आधारित शैक्षणिक व्यवस्था है अतः किसी एक या दो विषयों में Fail होने पर उस विषय में पास होने के लिए अगले वर्ष एक अवसर दी जाती है। परन्तु दूसरी बार भी सफल न होने पर एक साल रोक लगा दी जाती है अर्थात विद्यार्थी अगली कक्षा में प्रवेश नहीं ले पाते हैं।
चौथे वर्ष हमें RAWEP (Rural Agriculture Work Experience Program) का अध्ययन करना था। इसके लिए हमें चौथे वर्ष में 3 समूह में बाँट दिया गया। 2 समूह लड़कों का था और एक समूह लड़कियों की। तीनों समूह को अलग-अलग गाँव में RAWEP का अध्ययन करना था। यह वर्ष 2012 – 2013 थी।
चौथा वर्ष पूर्ण करने के पश्चात मैंने नौकरी करने की सोंची परन्तु कोई नौकरी न मिलने की वजह से मैंने स्नाकोत्तर हेतु प्रवेश परीक्षा लिखी जिसमें योग्य पाये जाने के बाद काउंसलिंग के दौरान मुझे Plant Breeding में सीट मिली। परन्तु मैंने बाद में म्यूच्यूअल का सहारा लेकर अपनी विषय उद्यान विज्ञान कर ली। उद्यान विज्ञान में मैंने पुष्प विज्ञान पर अनुसंधान कार्य किया।
मेरे अनुसंधान कार्य का टाइटल था- ” Evaluation of Marigold Genotypes for Flower and Xanthophyll Yield Under Chhattisgarh Plains”.
स्नाकोत्तर में कुल 2 वर्ष और 4 सेमेस्टर थे। इनमें 2 सेमेस्टर रेगुलर क्लास से, 1 सेमेस्टर रेगुलर क्लास और अनुसंधान कार्य तथा अंतिम सेमेस्टर केवल अनुसंधान कार्य से सम्बंधित थी। अनुसंधान कार्य में मुझे डॉ. गौरव शर्मा का सहयोग मिला। 2 वर्ष में मेरी डिग्री पूर्ण हुई और मैं अपने गृह ग्राम वापस आ गया।

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