अब क्या करूं?

अब क्या करूँ?जब मैं स्कूल में था तब सोंचता था कि स्कूल बड़ी तकलीफ़ देह है, और जब कॉलेज पहुँचा तो वहाँ से निकलने की बड़ी जल्दी थी। सोंचता था, यहाँ साल भर सिर्फ assignment ही मिलते रहते हैं। और ऊपर से बड़े-बड़े, मोटे किताबों को पढ़ने की चिंता। ऐसे में बिल्कुल भी मजा नहीं आता था। अपने-आप से और 2 दोस्त से हमेशा कहता रहता था कि “कब ये कॉलेज खत्म हो और इसके साथ पढ़ाई। काश कोई नौकरी लग जाती तो वहाँ मन लगाकर काम करता, क्योंकि कम से कम वहाँ पढ़ाई तो न करनी पड़ती।”

 

पढ़ाई पूरी हुई। दो महीने घर में रहा। बड़ी मेहनत की। और 4 महीने बाद सरकारी पोस्ट के लिए select भी हो गया। पहली पोस्टिंग मेरे गाँव से 350 km दूर हुई थी। सोंचा अब मजा आएगा नौकरी करने में।

ड्यूटी का पहला दिन था। मैं कृषि विभाग के प्रांगण में था और सरकारी आदान सामग्री का वितरण हितग्राहियों को कर रहा था। मुझे किसानों से सिर्फ जरूरी कागजात जैसे कि आधार, बी – 1, बैंक पासबुक के फोटोकॉपी और एक पासपोर्ट साइज फोटो लेकर उन्हें सरकारी सामग्री देना था। मैं ऐसा ही कर रहा था। इसी क्रम में एक व्यक्ति ऐसा भी आया जिसके पास कोई कागजात नहीं थी। मैंने उसे सामग्री नहीं दी।

ठीक उसी वक्त वहाँ एक बड़ी राजनीतिक पार्टी के लोकल मगर बड़ा नेता आया हुआ था। उसने यह घटना देख ली, उसे अपना प्रभुत्व दिखाने का अच्छा अवसर मिल गया अतः उस जाहिल नेता ने सबके सामने मुझे बुरी-बुरी गालियाँ देकर बुरी तरह जलील किया।

मन किया उसी दिन नौकरी छोड़कर घर आ जाऊँ। पर, हम मध्यमवर्गीय लोगों की एक ही समस्या होती है कि नौकरी छोड़ने की हिम्मत हम कर नहीं सकते। एक तरह से यह एक सामाजिक कलंक माना जाता है।

पर सच कहूँ तो नौकरी से मेरा जी भर चुका था। और आज भी मुझे यह करने का मन नहीं है। और इसलिए मैं उन संभावनाओं को तलाश रहा हूँ जो मुझे मेरी निर्णय लेने में help कर सकें।

Also read: मेरी कॉलेज शिक्षा: कृषि महाविद्यालय रायपुर || B. Sc. कृषि करें या नहीं?

Also read: मेरी पहली यात्रा: द्वारकाधीश गुजरात || Extension Education Institute (EEI), Anand Agricultural University, Gujarat

Leave a Comment