Disclaimer: “यह एक काल्पनिक कहानी है। किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है। किसी व्यक्ति विशेष की रोजाना जिन्दगी से इसकी समानता महज एक संयोग माना जायेगा।”
-हरीश मानिक
गुस्सैल रामदीन
रामदीन हमेशा की तरह अपने सामान को बेचने के लिए दूसरे गांव के बाज़ार गया था, लेकिन इस बार उसे वापसी में कुछ ज्यादा समय लग गया और रात हो गई।
रात के समय उसे जंगल से होकर गुजरना पड़ता अतः उसने अपने पड़ोस के गांव से होकर अपने घर जाने का फैसला किया।
रामदीन गोपालपुर से होकर अपने गांव जाने को निकला, उस गांव में एक सबसे बहुत पुराना बरगद का पेड़ भी था, जिसके नीचे एक विशाल बांबी भी था। उस बांबी में एक नागिन रहती थी जो कि दो नागों को निगल चुकी थी और कई लोगों को डस चुकी थी, जबकि अगले शिकार के तलाश में थी। रामदीन उस नागिन के बारे में कई लोगों से सुन चुका था इसलिए वह वहां से जल्द से जल्द निकल जाना चाहता था।
जैसे ही रामदीन उस विशाल बरगद के पेड़ के नीचे से गुजर ही रहा था कि नागिन उसके सामने आ गई। रामदीन पहले तो बहुत डर गया लेकिन हिम्मत जुटा कर पीछे हट गया और जल्दी से बरगद के पेड़ के एक झुके हुए टहनी को तोड़ कर नागिन पर लगातार वार करता रहा जब तक वह मर नहीं गई। नागिन के मरने के बाद वह अपने घर की ओर हड़बड़ी में निकल गया।
सुबह के समय रामदीन की पत्नी रज्जो उसे उठानी आई तो उसे पता चला कि उसे बहुत तेज बुखार है। सामान्य बुखार समझ कर उसे वैद्य को दिखाया गया लेकिन दिन ब दिन उसकी हालत खराब होने लगी और उसका व्यवहार भी बदल गया था। वह लोगों से झगड़ा करता, खरीखोटी सुनाता, हुक्म चलाने के अंदाज में रहता।
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उसकी हालत देख कर परिवार के सदस्यों ने उसे किसी ओझा से दिखाने का मन बनाया। जब उसे ओझा के पास लेे जाया गया तब पता चला कि उसके ऊपर किसी पिशाच का वास है। जब कुछ छान बीन किया गया तब पता चला कि रामदीन ने गोपालपुर के पुराने बरगद के नीचे की नागिन को मार डाला था, और उस नागिन को मारने के लिए उसने जिस बरगद के पेड़ की टहनी तोड़ी थी, उसी बरगद पेड़ में रहने वाले पिशाच ने कुपित होकर उसके शरीर को अपना निवास बना लिया था।
गोपालपुर के एक बुजुर्ग को उस ओझा के पास लाया गया, जो उस पिसाच का पहचान उन्हें बता सके, जिससे उस पिशाच को खत्म किया जा सके।
उस बुजुर्ग यानी शंभूनाथ ने बताया कि जब वह अधेड़ उम्र का था तब गोपालपुर में एक कलेक्टर छोटे से दौरे पर आया हुआ था। वह बहुत गुस्सैल स्वभाव का था और बात बात में वहां के लोगों पर अपना कलेक्टर होने का धौंस दिखाता था। एक दिन किसी बात में उसकी कुछ गांव वाले से बहस हो गई और बात मारपीट तक पहुंच गई। गांव वालों ने उसे बहुत पीटा और बेहोश समझ कर वहां से चले गए।
सुबह 4 बजे मंगलू किसान खेत की तरफ जा रहा था। उसे कलेक्टर अभी भी वहीं पड़े दिखा, जब मंगलू ने उसे चेक किया तो उसने पाया कि वह तो मर चुका है। जल्दी से मंगलू बाकी गांव वालों से मिला और सब बात बताई। गांव वालों ने पुलिस केस से बचने के लिए कलेक्टर के शव को गांव के उस पुराने बरगद के पेड़ में टांग दिया, क्योंकि वहां की नागिन की वजह से कोई भी वहां नहीं जाता था।
ये सब पता चलने पर ओझा ने फिर झाड़ फूंक चालू कर दिया एवं कुछ समय बाद रामदीन ठीक हो गया। अब गोपालपुर में भी ना तो उस नागिन का खौफ था और ना ही कलेक्टर के भूत का।