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परिचय: मदेसर (मधेश्वर) पहाड़

Madesar Pahad

इस पोस्ट के माध्यम से इस पर्वत के बारे में निम्न जानकारियाँ आप जान पाएंगे:

स्थिति
संरचना
जलवायु
आर्थिक महत्व
धार्मिक महत्व
ट्रेकिंग
वन्य प्राणी
मेरी ट्रैकिंग

Note: वर्तमान में इस पर्वत का खनन व्यावसायिक तौर पर अंधाधुन तरीके से की जा रही है। ठीक इसी तरह का दोहन मैनी नदी और ईब नदी का किया जा रहा है।

मदेसर पहाड़ (मधेश्वर पहाड़) कुनकुरी, जशपुर

मदेसर पहाड़ कुनकुरी क्षेत्र में स्थित एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान है। यह जगह जशपुर जिले के अंतर्गत आता है।

यह पहाड़ जशपुर पाट की बाहरी चोर अर्थात पर्वत श्रृंखला का ही एक हिस्सा है।

प्रचलित नाम: मदेसर पहाड़
उपनाम: एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग
गाँव: जोकारी
विकास खण्ड: कुनकुरी
तहसील: कुनकुरी
संभाग: अम्बिकापुर
राज्य: छत्तीसगढ़

जोकारी गाँव से यह मात्र 3 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। कुनकुरी से यह पश्चिम दिशा की ओर तथा जशपुर से दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है।

संरचना

Location: 22°47’49″N 84°02’37″E

यह पहाड़ अपनी संरचना के कारण पूरे भारत और विश्व में जानी जाती है। यह एक बहुत ही विशाल चट्टान से बनी हुई पर्वत है जो भूमि से सीधे 300 मीटर ऊँची ऊठी हुई है। इसका आकार एक शिवलिंग के समान है जो मंदिरों में स्थापित होते हैं। वर्षा ऋतु में इसके ऊपर बरसने वाली पानी जलधारा बनकर नीचे चली आती हैं, और इस प्रक्रिया बहती हुई धाराएँ इस शिवलिंग रूपी चट्टान में एक चौड़ी और लम्बवत निशान बना देती हैं जो बिल्कुल मंदिर के पुजारी द्वारा शिवलिंग पर लगाये गये लम्बे टीके की तरह दिखाई देती है। इस प्रकार एक प्राकृतिक शिवलिंग की संरचना हुई है। यह एक बहुत ही पुरानी पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है।

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जलवायु

यहाँ की जलवायु में विविधता देखने मिलती है। एक विशाल और भारी संरचना होने की वजह से यह अपने आसपास की जलवायु को प्रभावित करती है। इस प्रकार इसके द्वारा एक सुक्ष्म जलवायु की संरचना की जाती है।

यहाँ ठण्ड के दोनों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है तथा गर्मी के दिनों में जबरजस्त गर्मी की अनुभूति की जा सकती है। चुँकि यह वनसम्पदा से भरपूर है अतः वर्षा को अपनी ओर आकर्षित करती है, और यही कारण है कि यहाँ की औसत वार्षिक वर्षा जशपुर के अन्य जगहों से अधिक होती है।

आर्थिक महत्व

यह पहाड़ एक पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है। इसके साथ लगे हुए पर्वत, आसपास के लैंडस्केप (landscape), जमीन के नीचे का भाग पूरी तरह चट्टानी है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से दो धातु मिलते हैं, पहला अभ्रक और दूसरा व्यवसायिक चट्टान।

हालाँकि यह पर्वत पवित्र मानी जाती है इसलिये वर्षों पहले इस पर किये जा रहे खुदाई कार्य को ग्रामीण जनों के विरोध के फलस्वरूप सरकार को बन्द करवानी पड़ी। पर आसपास के चट्टानों का खुदाई कार्य अभी भी जारी है।

धार्मिक महत्व

इस जगह का धार्मिक महत्व बहुत ही अधिक है। यह हिदुओं के लिए पवित्र है। इस पहाड़ शिव भगवान का प्रतिरूप मानी जाती है। तथा प्रतिवर्ष यहाँ मेला भी आयोजित की जाती है और इससे पहले शिव भगवान की पूजा भी की जाती है। हालाँकि यह पर्वत आकर में शिवलिंग के समान ही है, फिर भी इसकी चोटी पर भगवान शिव की मंदिर बनी हुई है।

प्राकृतिक महत्व

प्राकृतिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र बहुत ही धनी है। पूरा क्षेत्र वनों से ढका हुआ है। वनों में विविधता देखने को मिलती है। हालाँकि साल वृक्ष की अधिकता है। वन्य प्राणियों में भी विविधता देखने में मिलती है।

पर्यटन की दृष्टि से महत्व

पर्यटन की दृष्टि से इसका महत्व बहुत अधिक है। हालाँकि इसके ऊपर चढ़ना निषेध है। यह पाप मानी जाती है। परन्तु इसके आसपास का क्षेत्र पर्यटन के योग्य हैं।

ट्रेकिंग

ट्रैकिंग के लिए यह जगह उत्तम मानी जाती है। पर्वत चोटी के ऊपर पहुँचने के लिए लिए ग्रामीणों के द्वारा कच्ची पगडंडी बनी हुई है। यह लगातार चढ़ने के कारण बनी हुई है। ट्रैकिंग के लिए सबसे उत्तम समय ठण्ड का मौसम होता है। क्योंकि यह पहाड़ काफी ऊँची है तथा चोटी के लिए बनी हुई पगडण्डी काफी लंबी है, इसलिए चढ़ाई 8 से 9 बजे ही शुरू कर देनी चाहिए।

वन्य प्राणी

वन्य प्राणी में शाही मुख्य जीव है। इसे इंग्लिश में Porcupine के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यहाँ निम्न जीव-जन्तु पाये जाते हैं:

1 भालू (रीछ)।
2 हिरण।
3 लोमड़ी।
4 जंगली मुर्गी।
5 Dove.
6 किंग कोबरा।
7 हिरण।

मेरी ट्रैकिंग

जब हम पहली बार इस पहाड़ पर ट्रैकिंग के लिए गये थे उस समय बरसात मौसम अपनी शुरुआती दौर में थी। हम तीन लोग थे, सुबह 7 बजे अपने गृह ग्राम से निकलने के 1 घण्टे के बाद हम इस पहाड़ के समीप स्थित ग्राम जोकारी पहुँचे। हमने अपनी गाड़ी (Omini) को अपने ही एक रिश्तेदार के घर में रखा। वहाँ से पहाड़ की दूरी मात्र 2 किलोमीटर थी। हम वहाँ से पैदल ही चल पड़े। पहाड़ की तलहटी पर पहुँचने के बाद हमने बिल्कुल ही नया रास्ता चुना। इस रास्ते से चोटी तक पहुँचने में हमें 1.5 घण्टे लगे। इस दौरान हमने 4 जगह रेस्ट लिया क्योंकि लगातार चढ़ाई कर पाना बहुत ही मुश्किल काम था।

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चोटी पर पहुँचना

चोटी पर पहुँचने के बाद हमने सुस्ताना प्रारम्भ किया। हालाँकि मुझे उल्टी आ रही थी, पर कुछ देर बार सब सामन्य हो गया। चोटी पर भगवान शिव की छोटी सी मंदिर और प्रतिमा स्थित है। हमने अपने साथ लाये पूजा सामग्री से शिव भगवान की पूजा अर्चना की।

कुछ देर बाद हमने अपने साथ लाये खाने के सामग्री को बैग से निकला और खानपान का कार्य पूरा किया। इसके बाद (दिल से) हमने अपने मोबाइल में डाऊनलोड किये डोरेमोन के एपिसोड्स देखे।

हमने बहुत सारे फ़ोटो भो लिए।

वापसी

पर्वत को चढ़ने में हमें 2 घण्टे लगे लेकिन उतरने में सिर्फ 15 मिनट लगे। उतरते समय तेज बारिश भी होने लगी।

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